करौली के पत्रिका संवाददाता ने जब रात्रि चौपाल कर जगाई अलख
गांव में कर्पूरचंद कुलिश को जानते, नहीं जानते आरटीई
गांव में कर्पूरचंद कुलिश को जानते, नहीं जानते आरटीई
शिक्षा का अधिकार कानून को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राजस्थान पत्रिका कार्यालय करौली की टीम ने गांव-गांव रात्रि चौपाल करके जनता के बीच अलख जगाने कार्य योजना तैयार की। इसके तहत पत्रिका कार्यालय करौली के संवाददाता व मैग प्रतिनिधि दिनेशचंद शर्मा ने टोडाभीम तहसील के कंजौली गांव में रात्रि विश्राम किया। गांव में पत्रिका कनेक्ट के तहत हुई रात्रि चौपाल में संवाददाता ने क्या कुछ देखा और अनुभव किया उसको अंक्षरश: प्रकाशित किया जा रहा है।
8 जुलाई 2011
समय:- 6:54 शाम
जिला प्रभारी श्री सुनील जैन ने मुझे कहा कि टोडाभीम तहसील के कंजौली गांव में पत्रिका कनेक्ट के तहत पहली रात्रि चौपाल करनी है। मैं उनसे अनुमति लेकर टोडाभीम तहसील के कंजौली गांव में रात्रि विश्राम किया। शाम करीब सात बजे जिला मुयालय स्थित पत्रिका कार्यालय से कंजौली के लिए मोटरसाइकिल से रवाना हुआ। कंजौली मुयालय से करीब पचास किलोमीटर दूर सुदूर गांव है।
रास्ते में बारिश बहुत थी। मैं एक दो जगह रूका अंत में रात करीब नौ बजे गांव में पहुंचा। विद्युत आपूर्ति बंद होने से पूरा गांव अंधरे में डूबा हुआ था। अधिकांश लोग सो चुके थे। जिस मुहिम और मकसद को लेकर मैं चला मुझे लग रहा था कि ग्रामीण पता नहीं मेरी बातों को समझ पाएंगे या नहीं ऐसी कुछ आशकाएं मेरे जेहने में कौंध रही थी। मैंने करौली से चलने से पहले पत्रिका के स्थानीय संवाददाता श्री कृष्ण कुमार शर्मा व सरपंच को अवगत करा दिया था। वे गांव की चौपाल पर मेरा इंतजार करते मिले। वहां मुश्किल से दस जने थे। मेरे पहुंचने के बाद कुछ ही देर में वहां ग्रामीणों की संया 50 को पार कर गई। इनमें कुछ महिलाएं व अधिकतर युवा व बच्चे थे।
मैंने एक पेड़ पर पत्रिका कनेक्ट का बैनर लगा दिया। सभी मेरी ओर जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहे थे। गांव में यह पहला मौका था जबकि किसी समाचार पत्र का प्रतिनिधि रात्रि विश्राम कर उनके हित व समस्याओं को सुनने पहुंचा हो। ग्रामीण मुझे पहले-पहल तो सरकारी कर्मचारी समझे, बाद मेरे द्वारा अभिप्राय समझाने पर वे समझ गए कि मैं पत्रकार हूं। मैंने पत्रिका कनेक्ट के तहत मीडिया एक्शन ग्रुप के संदर्भ में बातचीत करना शुरू किया। गांव में व्याप्त समस्याओं व उनके किस स्तर पर समाधान किए जा सकते है। विस्तार से चर्चा की। ग्रामीण मुझ में रूचि लेने लगे। गांव के सत्तर वर्षीय बुर्जुग दरबसिंह राजपूत ने मुझे, बीच में टोकते हुए कहा कि, ‘बेटा ई अखबार कर्पूरचंद कुलिश बारों ही है ना’। मेरे हां, कहने पर मानो उसे कोई सौगात मिल गई हो। इसके बाद तो उसे मेरे द्वारा कही हर बात पर विश्वास होने लगा। इससे मेरा काम और भी आसान हो गया और वह झट से मैग का सदस्य बनने को तैयार हो गया। उसके बाद पांच महिलाओं ने सदस्यता ली। फिर युवा व बच्चे भी आगे आ गए। कुछ ही देरे में पत्रिका कनेक्ट की ग्रामीण परिवेश वाली 56 सदस्ययी टीम वहां खड़ी हो गई। मैने देखा कि गांव में आरटीई कानून के बारे में कोई नहीं जानता, लेकिन कर्पूरजी उनके जेहन में जिंदा है। मैने उनसे आरटीआई के बारे में पूछा तो कुछ तो सोच में पड गए कि ये कौन सा कानून लागू हो गया। तब मुझे लगा कि सरकार ने भले ही कानून बना दिया हो लेकिन अभी तक इसकी भनक गांव तक नहीं पहुंच पाई है। मैंने मीडिया एक्शन गु्रप के माध्यम से मिले बैनर, पर्चे, नियमों से संबंधित (पत्रिका कार्यालय करौली में उपलब्ध दस्तावेज) ग्रामीणों को दिखाए। जब मैंने यह बताया कि अब उनके बच्चे भी फ्री भी निजी स्कूल में पढ़ सकेंगे, तो कई के मस्तक पर सलवटें पड़ गई। गांव का लाखनसिह उठकर खड़ा हुआ, बोला भाई साहब, ई सब सई में होगों या बैंसई भैकारोएं। जब मैंने अखबार में छपे कलक्टर के एक स्टेटमेट व पत्रिका कनेक्ट के तहत स्कूलों में प्रवेश दिलाने के अखबार में प्रकाशित खबरों व बच्चों के नामों जिन्होंने स्कूल में प्रवेश लिया, उन्हें विश्वास हो गया। मैने उन्हें एक अशिक्षित व्यक्ति को जिंदगीभर झेलने वाली पीडा से अवगत कराया। धीरे-धीरे उनकी समझ में आने लगा कि किस तरह वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजकर उनका जीवन खराब कर रहे हैं। उन्हें लड़कियों को भी विद्यालय भेजने के लिए कहा तो कुछ ग्रामीण तो मेरी बात से सहमत थे, लेकिन एक बुजुर्ग ने मुझे टोकते हुए कहा कि छोरियों को पढ़ाकर हमकू कौनसी नौकरी करानी है। तब एक बार मुझ फिर लगा कि आज भी गांव में 21वीं सदी के भारत की किरण नहीं पहुंच पाई है। लेकिन इसके बाद मैने उन्हें ऐसे कई उदहारणों के माध्यम से समझाया कि बेटियां कैसे पढ़-लिखकर उनका नाम रोशन कर सकती है। रात करीब 11.30 बजे तक ग्रामीणों से मेरी वार्ता होती रही। इस बीच बिजली आई और कई बार गई। इस दौरान दो महिलाएं मेरे लिए भोजन भी वहीं लेकर आ गई। मैंने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए भोजन वहीं किया। सुबह सभी को कनेक्ट कार्यक्रम के तहत गांव के स्कूल में शिक्षा से वंचित 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों को स्कूल भेजने की अपील की। अल सुबह हद हो गई। हमारे संवाददाता के घर पर मुझे बुलाने आ गए। सुबह 8 बजे गांव के सरकारी विद्यालय परिसर में रात्रि में बने सभी मैग सदस्यों ने 23 बच्चों को तिलक लगाकर माला पहनाकर स्कूल में प्रवेश दिलाया। शिक्षा विभाग की लिस्ट में जब मैंने देखा तो दंग रह गया कि उस गांव में पन्द्रह बच्चे ही शिक्षा से वंचित दिखाए गए थे, मैंने 23 बच्चों को जब स्कूल में नि:शुल्क शिक्षा के तहत प्रवेश दिलाया तो मुझे लगा कि मैंने अपने जीवन में एक सार्थक काम पूरा कर लिया। मेरी इस पहले में मेरे प्रभारी श्री सुनील जैन का मार्गदर्शन अग्रणी रहा है। मैं मेरे सभी पत्रिका साथियों से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे भी ऐसी कार्य योजना तैयार कर जब तक किसी गांव में अवश्य जाएं। कोई कार्य यदि संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ किया जाए तो निसंदेह उसमें सफलता मिलती है।
8 जुलाई 2011
समय:- 6:54 शाम
जिला प्रभारी श्री सुनील जैन ने मुझे कहा कि टोडाभीम तहसील के कंजौली गांव में पत्रिका कनेक्ट के तहत पहली रात्रि चौपाल करनी है। मैं उनसे अनुमति लेकर टोडाभीम तहसील के कंजौली गांव में रात्रि विश्राम किया। शाम करीब सात बजे जिला मुयालय स्थित पत्रिका कार्यालय से कंजौली के लिए मोटरसाइकिल से रवाना हुआ। कंजौली मुयालय से करीब पचास किलोमीटर दूर सुदूर गांव है।
रास्ते में बारिश बहुत थी। मैं एक दो जगह रूका अंत में रात करीब नौ बजे गांव में पहुंचा। विद्युत आपूर्ति बंद होने से पूरा गांव अंधरे में डूबा हुआ था। अधिकांश लोग सो चुके थे। जिस मुहिम और मकसद को लेकर मैं चला मुझे लग रहा था कि ग्रामीण पता नहीं मेरी बातों को समझ पाएंगे या नहीं ऐसी कुछ आशकाएं मेरे जेहने में कौंध रही थी। मैंने करौली से चलने से पहले पत्रिका के स्थानीय संवाददाता श्री कृष्ण कुमार शर्मा व सरपंच को अवगत करा दिया था। वे गांव की चौपाल पर मेरा इंतजार करते मिले। वहां मुश्किल से दस जने थे। मेरे पहुंचने के बाद कुछ ही देर में वहां ग्रामीणों की संया 50 को पार कर गई। इनमें कुछ महिलाएं व अधिकतर युवा व बच्चे थे।
मैंने एक पेड़ पर पत्रिका कनेक्ट का बैनर लगा दिया। सभी मेरी ओर जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहे थे। गांव में यह पहला मौका था जबकि किसी समाचार पत्र का प्रतिनिधि रात्रि विश्राम कर उनके हित व समस्याओं को सुनने पहुंचा हो। ग्रामीण मुझे पहले-पहल तो सरकारी कर्मचारी समझे, बाद मेरे द्वारा अभिप्राय समझाने पर वे समझ गए कि मैं पत्रकार हूं। मैंने पत्रिका कनेक्ट के तहत मीडिया एक्शन ग्रुप के संदर्भ में बातचीत करना शुरू किया। गांव में व्याप्त समस्याओं व उनके किस स्तर पर समाधान किए जा सकते है। विस्तार से चर्चा की। ग्रामीण मुझ में रूचि लेने लगे। गांव के सत्तर वर्षीय बुर्जुग दरबसिंह राजपूत ने मुझे, बीच में टोकते हुए कहा कि, ‘बेटा ई अखबार कर्पूरचंद कुलिश बारों ही है ना’। मेरे हां, कहने पर मानो उसे कोई सौगात मिल गई हो। इसके बाद तो उसे मेरे द्वारा कही हर बात पर विश्वास होने लगा। इससे मेरा काम और भी आसान हो गया और वह झट से मैग का सदस्य बनने को तैयार हो गया। उसके बाद पांच महिलाओं ने सदस्यता ली। फिर युवा व बच्चे भी आगे आ गए। कुछ ही देरे में पत्रिका कनेक्ट की ग्रामीण परिवेश वाली 56 सदस्ययी टीम वहां खड़ी हो गई। मैने देखा कि गांव में आरटीई कानून के बारे में कोई नहीं जानता, लेकिन कर्पूरजी उनके जेहन में जिंदा है। मैने उनसे आरटीआई के बारे में पूछा तो कुछ तो सोच में पड गए कि ये कौन सा कानून लागू हो गया। तब मुझे लगा कि सरकार ने भले ही कानून बना दिया हो लेकिन अभी तक इसकी भनक गांव तक नहीं पहुंच पाई है। मैंने मीडिया एक्शन गु्रप के माध्यम से मिले बैनर, पर्चे, नियमों से संबंधित (पत्रिका कार्यालय करौली में उपलब्ध दस्तावेज) ग्रामीणों को दिखाए। जब मैंने यह बताया कि अब उनके बच्चे भी फ्री भी निजी स्कूल में पढ़ सकेंगे, तो कई के मस्तक पर सलवटें पड़ गई। गांव का लाखनसिह उठकर खड़ा हुआ, बोला भाई साहब, ई सब सई में होगों या बैंसई भैकारोएं। जब मैंने अखबार में छपे कलक्टर के एक स्टेटमेट व पत्रिका कनेक्ट के तहत स्कूलों में प्रवेश दिलाने के अखबार में प्रकाशित खबरों व बच्चों के नामों जिन्होंने स्कूल में प्रवेश लिया, उन्हें विश्वास हो गया। मैने उन्हें एक अशिक्षित व्यक्ति को जिंदगीभर झेलने वाली पीडा से अवगत कराया। धीरे-धीरे उनकी समझ में आने लगा कि किस तरह वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजकर उनका जीवन खराब कर रहे हैं। उन्हें लड़कियों को भी विद्यालय भेजने के लिए कहा तो कुछ ग्रामीण तो मेरी बात से सहमत थे, लेकिन एक बुजुर्ग ने मुझे टोकते हुए कहा कि छोरियों को पढ़ाकर हमकू कौनसी नौकरी करानी है। तब एक बार मुझ फिर लगा कि आज भी गांव में 21वीं सदी के भारत की किरण नहीं पहुंच पाई है। लेकिन इसके बाद मैने उन्हें ऐसे कई उदहारणों के माध्यम से समझाया कि बेटियां कैसे पढ़-लिखकर उनका नाम रोशन कर सकती है। रात करीब 11.30 बजे तक ग्रामीणों से मेरी वार्ता होती रही। इस बीच बिजली आई और कई बार गई। इस दौरान दो महिलाएं मेरे लिए भोजन भी वहीं लेकर आ गई। मैंने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए भोजन वहीं किया। सुबह सभी को कनेक्ट कार्यक्रम के तहत गांव के स्कूल में शिक्षा से वंचित 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों को स्कूल भेजने की अपील की। अल सुबह हद हो गई। हमारे संवाददाता के घर पर मुझे बुलाने आ गए। सुबह 8 बजे गांव के सरकारी विद्यालय परिसर में रात्रि में बने सभी मैग सदस्यों ने 23 बच्चों को तिलक लगाकर माला पहनाकर स्कूल में प्रवेश दिलाया। शिक्षा विभाग की लिस्ट में जब मैंने देखा तो दंग रह गया कि उस गांव में पन्द्रह बच्चे ही शिक्षा से वंचित दिखाए गए थे, मैंने 23 बच्चों को जब स्कूल में नि:शुल्क शिक्षा के तहत प्रवेश दिलाया तो मुझे लगा कि मैंने अपने जीवन में एक सार्थक काम पूरा कर लिया। मेरी इस पहले में मेरे प्रभारी श्री सुनील जैन का मार्गदर्शन अग्रणी रहा है। मैं मेरे सभी पत्रिका साथियों से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे भी ऐसी कार्य योजना तैयार कर जब तक किसी गांव में अवश्य जाएं। कोई कार्य यदि संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ किया जाए तो निसंदेह उसमें सफलता मिलती है।
-दिनेशचंद शर्मा
पत्रिका संवाददाता
करौली संस्करण
Mob. 988711106
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