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Friday, 5 August 2011

Kuchaman City - Private Schools don't really Care ! ---- No action under RTE

सरकारी फरमान को ठेंगा
-निजी स्कूलों में २५ फीसदी बच्चों को नहीं दिया प्रवेश
-सख्त कार्रवाई के अभाव में हौंसले बुलंद
-के.आर.मुण्डिण्यार/हिमांशु धवल
कुचामनसिटी, 5 अगस्त
जनप्रतिनिधियों एवं सरकारी विभाग के कारिन्दों की मिलीभगत के चलते प्राइवेट स्कूल संचालक स्वयंभू बनते जा रहे हैं। शिक्षा विभाग के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। इसके बावजूद शिक्षा विभाग की ओर से कार्रवाई के अभाव में इनके हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा विभाग की ओर निजी विद्यालयों में २५ फीसदी गरीब बच्चों को पूर्व प्राथमिक से लेकर पहली कक्षा में प्रवेश दिए जाने के निर्देश दिए गए थे। इसकी सूचना ३१ जुलाई तक संबंधित नोडल केन्द्र पर भिजवाई जानी थी। लेकिन माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक प्राइवेट स्कूल संचालकों ने उक्त निर्देश को दरकिनार कर दिया।  उन्होंने इसकी सूचना तक देना मुनासिब नहीं समझा। क्षेत्र की कुछ स्कूलों ने ही सूची उपलब्ध कराई है।
केवल 3 स्कूलों ने ही माना आदेश
कुचामनसिटी नोडल क्षेत्र में ५३ निजी माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं। इसमें से जिजोट के टैगोर बाल शिक्षण संस्थान, टोडास के आदर्श विद्या मंदिर माध्यमिक एवं कुचामनसिटी के सांई बाबा निकेतन माध्यमिक विद्यालय ने २५ फीसदी दुर्बल वर्ग बच्चों को प्रवेश दिए जाने की सूचना उपलब्ध कराई। इसके अलावा ५० नामी स्कूलों ने सूचना एवं बच्चों को प्रवेश आदि देना मुनासिब तक ही नहीं समझा। सूत्रों के मुताबिक कई निजी स्कूलों ने दुर्बल वर्ग के ऐसे परिवारों को प्रवेश देने से इनकार करते हुए टरका दिया। ऐसे कई परिजनों ने जिला प्रशासन के अलावा शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को कुछ निजी स्कूलों की शिकायतें भी की है।
इसलिए हौसलें बुलंद!
गत दिनों शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने भी कुचामनसिटी की निजी स्कूलों की पैरवी करते हुए निजी स्कूलों को कमा-खाने की बात कही थी। शिक्षा मंत्री प्रेस के सवालों से उस समय इस कदर खफा हुए थे कि उससे साफ झलक रहा था कि निजी स्कूलों से उनका खासा लगाव है। इससे साफ हो गया हैकि न तो सरकार निजी स्कूलों पर लगाम रखना चाह रही हैऔर न शिक्षा विभाग को इसकी परवाह है। केवल आम जनता को गुमराह करने के लिए थोथे आदेश निकाले जा रहे हैं।
दर्द ना जाने कोई-
एक तरफनिजी स्कूलों की मनमर्जीके आगे शिक्षा विभाग नतमस्तक है। वहीं दूसरी ओर शहर में दुर्बल वर्ग के सैकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित है। उन्हें निजी स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है और न ही किसी भी निजी स्कूल ने सेवा भाव से ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोडऩे का प्रयास किया है। कहने को भले ही शहर को शिक्षानगरी कहे, लेकिन यहां ेके हालात देखकर लगता हैकि यहां कुछ निजी स्कूलों की मनमर्जीके चलते शिक्षा का पेशासेवा के बजाय धन कमाने की लालसा की ओर बढ़ रहा है।
टेट परीक्षा में भी अवहेलना-
निजी स्कूलों की विभाग के आला अधिकारियों एवं सरकार तक ऊंची पकड़ होने के कारण वे किसी भी तरह के सरकारी फरमान की परवाह नहीं करते। गत दिनों अध्यापक पात्रता परीक्षा (टेट) के लिए राजकीय जवाहर उच्च माध्यमिक स्कूल नोडल की ओर से एक निजी स्कूल से परीक्षार्थियों की व्यवस्था के लिए 150 टेबिल-कुर्सियों के सैट मांगे गए थे। लेकिन उस निजी स्कूल ने सैट देने की बात तो दूर, विभाग कार्मिकों से सीधे मुंह बात तक नहीं की। ऐसे में कार्मिकों को एक अन्य स्कूल से टेबिल-कुर्सियों की व्यवस्था करनी पड़ी।
यह हो सकती है कार्रवाई
राज्य सरकार व विभाग की ओर से समय-समय पर प्रसारित निर्देश एवं आदेशों की पालना समय-समय पर करनी होगी। वांछित सूचनाएं एवं उपलब्ध कराने होंगे। नियमों की अवहेलना करने पर संबंधित स्कूल की मान्यता रद्द करने का प्रावधान भी है।

Wednesday, 3 August 2011

Kuchaman City - Impact of the campaign - RTE

मीडिया एक्शन ग्रुप (मैग) की मुहिम का असर--
--वह बालिका दो बच्चों की मां है
--सीटीएस ‘पोल’ पर पर्दा डालेंगें!
-अब ऑनलाइन अपडेशन विभाग कार्मिक करेंगे
-सीटीएस का नए सिरे से अपडेशन की तैयारी
-विभाग कार्मिकों को प्रशिक्षण दिया
के.आर. मुण्डियार @ कुचामनसिटी।
कुचामनसिटी, 3 अगस्त.

बीते साल तैयार सीटीएस सर्वे की तैयार सूचियों की प्रदेश भर में चौड़े आई त्रुटियां को ढांकने की तैयारी कर ली गई हैं। कम्पनी के सर्वे की गड़बड़ी दुरस्त करने का जिम्मा शिक्षा विभाग कार्मिकों के कंधों डाल दिया गया है। नए आदेशों के तहत विभाग के कार्मिक सीटीएस सर्वे के तहत विलेज एजुकेशन रजिस्ट्रर (वीईआर) के ऑनलाइन अपडेशन में जुट गए हैं।
सीटीएस की त्रुटियां को दूर करने के लिए प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय निर्देश पर प्रदेश भर में ब्लॉक स्तर पर नोडल प्रभारियों के जरिए नए सिरे से प्रपत्र भरवाए गए हैं। प्रपत्र संख्या एक से चार की रिपोर्ट के जरिए सीटीएस की वीईआर का अपडेशन किया जाएगा। ऑनलाइन अपडेशन के लिए जिला स्तर पर प्रत्येक ब्लॉक से एक-एक संदर्भ व्यक्ति तथा कम्प्यूटर ऑपरेटर को एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बुधवार (3 अगस्त) को नागौर जिले के कार्मिकों को इस आशय का एक दिवसीय प्रशिक्षण जिला मुख्यालय पर दिया गया। प्रशिक्षण लेने वाले कार्मिक सीटीएस की सूची का ऑनलाइन अपडेशन करेंगे। नोडल प्रभारियों की ओर से तैयार प्रपत्रों के जरिए अपडेशन किया जाएगा। जिसके तहत सीटीएस के बीते साल के सर्वे में चिह्नित बच्चों की सूची में 6  से 14 वर्ष की निर्धारित आयु से अधिक आयु व अल्प आयु वाले बच्चों, पलायन कर चुके बच्चों के नाम हटाएं जाएंगे तथा वीईआर से वंचित रह चुके बच्चों के नाम जोड़े जाएंगे। गौरतलब हैकि ‘राजस्थान पत्रिका’ के मीडिया एक्शन गु्रप टीम ने ‘आओ पढ़ाएं, सबको बढ़ाए’ मुहिम के तहत सीटीएस सर्वे की गड़बड़ी को लेकर प्रदेश भर में शृंखलाबद्ध समाचार प्रकाशित किए थे। इन समाचारों में यह भी बताया गया था कि सीटीएस सर्वे की गड़बड़ी के कारण विभाग को चिह्नित बच्चे खोजने में क्या-क्या समस्याएं आ रही है और कई बच्चे वास्तविक रूप से शिक्षा से जुड़ नहीं पा रहे हैं।
इनका कहना है---
बीते साल सीटीएस की ऑनलाइन रिपोर्ट फर्म के जरिए करवाई गई थी।जिसमें कई त्रुटियां सामने आई। नए निर्देशों के तहत कार्मिकों को ऑनलाइन अपडेशन का प्रशिक्षण दिया गया है। कार्मिकों से नए सिरे से वीईआर तैयार करवाई जा रही है। कार्मिकों के जरिए होने वाले कार्य में गड़बड़ी की गुजाइंश काफी कम होगी।
-करणीसिंह राठौड़, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (प्रा.शि.), कुचामनसिटी

Monday, 1 August 2011

KUCHAMAN CITY - Swinging in the Fairs as helpers, need a Mobile School!! Can RTE help??

 ‘झूलों’ में झूल रही है ‘जिदंगी’
हिमांशु धवल, कुचामनसिटी। १ अगस्त.
-मीडिया एक्शन गु्प की पड़ताल
-झूलों का कारोबार करने वालों के बच्चों की दास्तान
-सैकड़ों बच्चों का भविष्य अंधकार में
-शिक्षा तो दूर की बात, बच्चों को बचपन भी छिन रहा है


मेलों में झूले लगाने वाले परिवारों की जिन्दगी खुद ‘झूला’ बन गई है। झूला लगाते-चलाते ये परिवार किस कदर झूल रहे हैं, वे दुनियादारी की भी परवाह नहीं रही है। ऐसे परिवारों के  बच्चों का भविष्य न केवल अंधकार रूपी गर्त की भेंट चढ़ रहा है बल्कि बचपन भी छिन रहा है। खेलने-कूदने व पढऩे की उम्र मे सैकड़ों बच्चे झूले-चकरी के कार्य में ‘हैल्पर’ की भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें झूलों एवं खतरों से खेलने वाले कार्य विरासत में मिल रहे है। ऐसे में ये बच्चे शिक्षा के अधिकार से कोसों दूर है।
‘राजस्थान पत्रिका’ के मीडिया एक्शन गु्रप टीम ने ऐसे परिवारों की पड़ताल की तो स्थिति चौकानें वाली नजर आई। ऐसे परिवार गांव-शहर में मेले लगाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। एक गांव या शहर में मेला खत्म होते ही दूसरे गांव-शहर की ओर रूख कर रहे हैं ऐसे परिवार। दो दिन पहले हरियाली अमावास के मेले में झूले लगाने कुचामनसिटी आए परिवारों की ‘पत्रिका’ ने दास्तान सुनी। यहां पर कुल 25 परिवार मिले। जो एक साथ खानाबदोश कबीले के रूप में हर मेले में जाकर कारोबार कर रहे हैं। इनमें झूले-चकरी, मौत का कुआं, सर्कस, इलेक्ट्रीक झूले, ब्रेक डांस, झूला कश्ती, मिक्की माउस, हवा में झूलती नांव आदि लगा रहे हैं। छानबीन की तो इन परिवारों के साथ करीब 100 बच्चे शिक्षा से वंचित पाए गए। परिवारों के मुखियाओं से पूछा तो वे अपनी देहाती भाषा में बोले, पढक़र क्या करेंगे, हमनें भी पढ़ाई नहीं की, और पढ़ेंगे भी कैसे, हम एक जगह तो रूकते ही नहीं। ऐसे परिवारों की व्यथा सुनकर कई सवाल खड़े हो गए। जिनका जवाब भी शायद मुश्किल है।
हर पल मौत का साया--
ऐसे परिवारों के सिर पर हर पल मौत का साया मंडराता रहता है। कई परिवार इलेक्ट्रॉनिक झूले तथा जनरेटर से चलने वाले कई मनोरंजन के खेल भी चलाते हैं। ऐसे में यहां के नन्हें-मुन्नों के सिर पर भी हर पल खतरा पसरा रहता है।
बारस मास टेंट में ‘जिन्दगी’-
झूले-चकरी जैसे कार्य में जुटे परिवार साल भर खुले आसमान के नीचे टेंटमें गुजर-बसर कर रहे हैं। सर्दी हो या बरसात या फिर गर्मी ऐसे परिवारों के लिए मुसीबत के पहाड़ खड़े करती है, लेकिन पेट की मजबूरी के चलते ऐसे परिवार तमाम तरह की मुश्किलें झेलने को मजबूर है।
रूखसार, शबाना भी पढऩा चाहती है---
झूला-चकरी लगाने वाले कबीले में रूखसार, शबाना, समीर सहित कई बच्चों ने स्कूल जाकर पढऩे की इच्छा जताई। इन बच्चों ने कहा कि वे पढ़ाई कैसे करें, हमारा परिवार तो एक जगह रूकता ही नहीं है। घर वाले ठिकाने भी बदल देते हैं।
घंटों के लिए दस दिन की मेहनत
मेले में लोगों के कुछ घंटों के मनोरंजन के लिए इन्हें कई दिन खराब करने पड़ते हैं। मेले में झूले, चकरी, मौत का कुएं आदि लगाने में करीब १० दिन का समय लगता है। ऐसे कार्य में बच्चे भी सहयोग करते हैं।
बारिश से मेहनत पर पानी
मेले वालों के लिए बारिश परेशानी का पैगाम लाती है। बारिश के कारण झूले एवं मौत के कुएं आदि बंद करने पड़ते हैं। इसके कारण समय एवं धन दोनों बर्बाद हो जाता है।
मुनाफा हुआ कम
झूले, चकरी एवं मौत का कुएं आदि का सामान ट्रकों के माध्यम से लाया जाता है। महंगाई के चलते ट्रकों के भाड़े में तो बढ़ोतरी हो गई। लेकिन झूले आदि की रेट आज भी वही चल रही है। इसके चलते दिनों दिन मुनाफा कम होता जा रहा है।

मेले-दर-मेले घूमती जिन्दगी
हरियाली अमावस के कुछ दिन पहले ही ऐसे खानाबदोश परिवार अपना गांव छोडक़र कुचामनसिटी पहुंच जाते है। यहां पर हरियाली अमावस्या के मेले के बाद मौलासर एवं इसके बाद खुण्डियास मेले जाते हैं। झूले व मौत के कुएं संचालकों के अनुसार साल में दस महिने परिवार सहित घरों से बाहर रहते हैं। सिर्फ दो महिने गांव में रहते हैं। इसके अलावा अधिकांश लोग इनके साथ ही घूमते रहते हैं।

Kuchaman City - Poor girls connected to education

सखियों संग ‘लाडो’ पहुंची स्कूल

-तालीम से जुड़ी कईबेटियां
-मीडिया एक्शन गु्रप की मुहिम
-आओ पढ़ाएं, सबको बढ़ाए
कार्यालय संवाददाता @ कुचामनसिटी।
कुचामनसिटी, २9 जुलाई.
राजस्थान पत्रिका मीडिया एक्शन गु्रप की ‘आओं पढ़ाएं, सबको बढ़ाएं’ मुहिम बेटियों को शिक्षा से जोडऩे के लिए वरदान साबित हो रही है। अब तक  बेटियों को पढ़ाने में ना-नुकर करने वाले परिवारों ने भी शिक्षा से नाता जोड़ लिया है। उनकी ‘लाडो’ भी स्कूल के दर पहुंच गईहै।

मुहिम की प्रेरणा से राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नम्बर-4 रैगर बस्ती में कईऐसी बेटियों का दाखिला हुआ है, जो स्कूल जाने के सपने ही देख रही थीं।  शहर के कुछ मोहल्लों में ‘बेटियां तो पराया धन होती है, उन्हें पढ़ाकर क्या करना’ जैसी भ्रांति के कारण कई बेटियां शिक्षा से वंचित थी। स्कूल के प्रधानाध्यापक भानुप्रकाश ओदिच्य एवं शिक्षिका सरोज शर्मा ने ‘पत्रिका’ की प्रेरणा से ऐसे बच्चों को खोजने के लिए कईबस्तियों के घर खंगाले। परिवारों के मुखियाओं से वार्ता की और उनसे बेटियों को भी स्कूल भेजने का आग्रह किया। काफी प्रयास के बाद मुखिया अपने बेटियों को स्कूल भेजने को राजी हुए। दुर्बल वर्ग से जुड़ी इन बेटियों को स्कूल में प्रवेश के लिए स्कूल यूनिफार्म की बाध्यता नहीं रखी है। 
बच्चों के दाखिले के दौरान प्रधानाध्यापक ओदिच्य ने कहा कि यदि पत्रिका की मुहिम नहीं होती तो ऐसा संभव नहीं होता। मुहिम के कारण लोगों में प्रेरणा जाग्रत हुई और कई बच्चे स्कूल से जुड़ गए।
इन्हें नसीब हुई तालीम---
कुचामनसिटी: राज.उ. प्रा. विद्या. संख्या-4  रैगर बस्ती में सीटीएस के अलावा जोड़े नए बच्चे---
क्र.सं.  नाम(उम्र)    पिता का नाम          कक्षा में प्रवेश
1. मुन्नी (12) पुत्री अब्दुल गफ्फार         तृतीय
2. लाडो (10) पुुत्री अयुब                      तृतीय
3. फरजाना(9) पुत्री सलीम                    द्वितीय
4. सीमा(10) पुत्री सलीम                      तृतीय
5. सोनू (6 ) पुत्री गन्नी                          प्रथम
6 . चम्पा(11) पुत्री रामलाल बावरी          द्वितीय
7. मुन्नी(8 ) पुत्री रामलाल बावरी            प्रथम
8 . महावीर(10)पुत्र  रामकुमार                तृतीय
9. सोहिल(8 ) पुत्र बाबूद्दीन                      द्वितीय
10. रफीक(8 ) पुत्र शहाबुद्दीन                   प्रथम
11. अफजल(8 ) पुत्र अयुब                       प्रथम
-के.आर. मुण्डियार/हिमांशु धवल, कुचामनसिटी

लोगो या कॉर्टून---
वह ‘बालिका’ तो दो बच्चों की मां है!
-ये कैसा प्रवेशोत्सव?
-सीटीएस सर्वे की गफलत, शिक्षकों  का समय का अपव्यय
-मीडिया एक्शन गु्रप की पड़ताल में खुली पोल
के.आर.मुण्डियार @ कुचामनसिटी।
कुचामनसिटी, २9 जुलाई.

शिक्षा से वंचित जिस बालिका को खोजने गए, वह तो दो बच्चों की मां निकली। तो कईकिशोर एक साल के भीतर ही जवान हो गए। शिक्षा विभाग के इस साल चलाए गए नामांकन अभियान में चाइल्ड ट्रेकिंग सर्वे के ऐसे विपरित आंकड़ों की पोल खुल गई है। शिक्षानगरी कुचामनसिटी में सीटीएस के आंकड़े न केवल गफलत वाले साबित हुए, बल्कि आंकड़ों के कारण नामांकन अभियान में जुटे शिक्षा कार्मिकों की खासी परेड भी हो गई।
शिक्षा विभाग के प्रवेशोत्सव व नामांकन अभियान को लेकर ‘राजस्थान पत्रिका’ मीडिया एक्शन गु्रप ने सीटीएस आंकड़ों की क्रमिक पड़ताल की। कई दिनों की पड़ताल के मामले चौकानें वाले आए। सर्वे में कईऐसे बच्चों के नाम भी जोड़ दिए गए, जो पहले से ही स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बच्चे खोजने के लिए कईस्कूलों को सौंपी गई लक्ष्य की सूची में कईऐसे नाम भी सामने आए, जो ‘ओवरएज’ या ‘अंडरऐज’ के हैं, जिनकी वास्तविक आयु 15 से 22 या 1 से 3 वर्ष तक ही है। चौकानें वाली बात तो यह हैकि सर्वे में जिन्हें 7-8  वर्ष आयु की ‘बालिकाएं’ दर्शाया गया है, उनकी तो शादी हो चुकी है और वे दो-दो बच्चों की माएं हैं। गड़बड़ी यह भी है कि कईबच्चों के नाम दूसरे क्षेत्रों की सूची में जोड़ दिए गए हैं। जो खोजने से ही नहीं मिल रहे। स्कूलों की ओर से बच्चे खोजने के दौरान ऐसी विपरित परिस्थितियां सामने आई हैं। ऐसे में न केवल नामांकन अभियान में जुटे शिक्षकों के अमूल्य समय का अपव्यय हुआ, बल्कि पूरे माह चले अभियान में स्कूल प्रवेश ले चुके अन्य विद्यार्थियों का शिक्षण कार्य भी प्रभावित होता रहा।
गलफत की बानगी: एक नजर-
-सीटीएस सर्वे के तहत राजकीय प्राथमिक विद्यालय नम्बर 7 बुगालिया बास को बीईईओ कार्यालय से दी गईसूची में 15 बच्चे खोजने का लक्ष्य दिया गया। जिसमें 8  बच्चे अनामांकित व 7 बच्चे ड्राप आउट बताए गए। स्कूल टीम ने बच्चे खोजने शुरू किए तो सीटीएस क्रमांक 92 से 106  तक के  सभी बच्चे निजी व सरकारी स्कूलों में पढ़ते पाए गए। इस पर टीम को इन बच्चों को एस.आर.नम्बर लिखकर खानापूर्ति करनी पड़ी।
-सीटीएस सर्वे के तहत राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नम्बर 4 रैगर बस्ती को बीईईओ कार्यालय से 50 बच्चों के नाम की सूची दी गई। जिन्हें शिक्षा से जोडऩा था। इस सूची में से 25 बच्चे ओवरऐज पाए गए। जिनकी उम्र 15-22 पाईगई।
-सीटीएस क्रमांक 338  में शमयब पुत्री चिरागुद्दीन की उम्र 13 वर्ष दर्ज है। जबकि शमयब की तो एक साल पहले शादी हो चुकी है।
-सीटीएस क्रमांक 344 मंजू की उम्र 12 साल तथा क्रमांक 343 में संजू की उम्र 7 वर्ष लिखी हुई हैं। लेकिन दोनों बहनों की शादी हो चुकी और बच्चों की मां भी है। वास्तविक रूप से दोनों की उम्र 20 से 22 साल है।
-सीटीएस क्रमांक 98  में पूनम पुत्री कमल की उम्र 8  साल दर्ज है। लेकिन उसकी वास्तविक उम्र तो 3 साल ही है। तो इसे कैसे प्रवेश दें?
-सीटीएस क्रमांक 106  में रेखा पुत्री बोदूराम उम्र 13 वर्ष को अनामांकित दर्शाया गया है। जबकि बालिका वास्तविक नाम सरिता है और वह रामा मेमोरियल स्कूल में नवमीं कक्षा में पढ़ रही है।
-कुचामनसिटी ब्यूरो।
-सादर प्रेषित
-के. आर. मुण्डियार, प्रभारी, कुचामनसिटी ब्यूरो
फोन- ९८२९०६६०३६