Sunday, 29 May 2011

Education Campaign - bhilwara, doongarpur and Indore did so well

भुवनेश, नुपुर, मिलन और पंखुरी ने अभियान को दिया बेहतर अंजाम
भुवनेश ने भीलवाडा में गरीब बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने, लोगों को जोड़ने और बच्चों के लिए समाज के लोगों से आर्थिक मदद हासिल करने में पूरी शिद्दत से काम किया है.
डूंगरपुर के मिलन ने अद्भुत काम किया है, उसकी तहे दिल से प्रशंसा, करीब ४१ बच्चों को शिक्षा के द्वार तक पहुचने के साथ इसने नागरिक संगठन - सेव द चिल्ड्रेन - के सहयोग से helpline संचालित की .जिसे हाल ही जयपुर में नागरिक संगठनों के एक अनौपचारिक समूह ने सराहा, वहां पत्रिका की पहल को बेहद सराहा गया और अब शिक्षा के अधिकार को लेकर चल रही बहस में हमारी भागीदारी अपेक्षित रहने लगी है, इस समूह में प्रदेश के सभी नामी और अन्तराष्ट्रीय संगठनों का प्रतिनिधित्व था. ....डूंगरपुर में हुए काम की सराहना यहाँ दूसरों के मुहं से सुनकर अच्छा लगा .....मिलन को बधाई
इंदौर में पंखुरी लगातार बस्तियों में बैठकें कर रही हैं, बच्चों की शिक्षा के लिए बेहतर और असल काम करने की कोशिश है, वहां संपादकीय अभियान ने ज़बरदस्त माहौल बनाया और जागरूकता का असर जल्द ही प्रवेश की स्थिति में नज़र आएगा ...इंदौर में helpline ने भी अधिकार का उपयोग करने में मदद की. दीनबंधु नाम की संस्था ने इस काम में काफी मदद की
एक मजदूर के बच्चे को वहां के नामी स्कूल में प्रवेश लीड के तौर पर ली, तब एहसास हुआ कि अपने बूते कितनों को शिक्षा कि रौशनी नसीब हो जाएगी, सुकून का ये एहसास अपने रिपोर्टर्स की ज़बानी सुनकर अच्छा लगा. इंदौर की नुपुर को ये एहसास था कि  हम बहुत नेक काम में हाथ बंटा रहे हैं . ...नुपुर ने बहुत बेहतर तरीके से अभियान को अंजाम दिया ...उसे बधाई

अभियान के बारे में और संस्करणों की कहानी और रिपोर्टर्स की पहल के बारे में भी जल्द ही............. 

क्षिप्रा
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LIVE PARK - Water Audit and Traffic on agenda

समझ के साथ हौसले में भी इजाफा--- अब शुरू होगा पानी का औडिट

जयपुर  में चल रहे लाइव पार्क कार्यक्रम में वहां की युवा टीम ----- सौरभ, नीरज, अभय, अजय की टीम  बढ़ चढ़कर भाग लेती है, और ज़िम्मेदारी भी सम्हालती है. इस बार यहाँ रोड सेफ्टी पर जागरूकता और समझ बढ़ने की मुहीम चलाई गयी, ....

प्रेरणा पीपल्स संस्था चलाती हैं और बहुत समय से संपर्क में थी, उन्होंने यातायात पर मोंक ड्रिल बेहद शिद्दत से करवाई,, यहाँ हर हफ्ते कुछ न कुछ गतिविधियाँ करवाने से कुछ लोग जो अब तक घर की चारदीवारी से नहीं निकले थे उन्हें हौसला मिला है, रेखा जी ऐसा ही नाम हैं, जो इस कालोनी की निवासी हैं और सामान्य पढाई लिखी होने के बावजूद समझ में बहुत आगे हैं. अपने शिक्षा के अभियान - आओ पढाएं, सबको बढाएं, में रेखा जी ने बहुत सहयोग दिया, सौरभ के साथ युवाओं ने कुछ बच्चों की पहचान की है, जिन्हें स्कूल में प्रवेश की ज़िम्मेदारी यही निभायेंगे.....सबसे बड़ी चुनौती है की जिनके माता पिता का सामर्थ्य नहीं उनकी मदद कसी की जाये....हल ज़रूर निकलेगा, मदद को हाथ भी बढ़ेंगे

इस इलाके यानी मानसरोवर के सेक्टर ११ में अब माहौल बन गया है, अपनी टीम खड़ी हो रही है, यहाँ की टीम ने मीडिया एक्शन ग्रुप के बैनर तले पानी, गन्दगी की समस्याओं को काफी हुड तक सुलझाया है, ज़िम्मेदार अधिकारियों से बात करना, उन्हें शिकायत करना, सुलझाना सब काम अपने हाथ लिया है.....लोकेश जी यहाँ की रेज़ीडेंट कालोनी के अध्यक्ष हैं, बेहद सक्रिय कार्यकर्ता और ज़मीनी व्यक्ति, उनकी ऊर्जा से काफी काम संभव हो जाता है,  रास्ता निकल आता है, 


अब अगला चरण है, पानी की पुनर्भरण संरचनायों का औडिट करना....काफी तैयारी है, फोटो के ज़रिये समझिएगा असल काम के मायने ....

Saturday, 28 May 2011

थैले में स्कूल, सड़क पर क्लास....

कक्षा पांच का अर्जुन डॉक्टर बनना चाहता है, लेकिन उसके गरीब पिता उसे जिस सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा है उसकी बदहाली अर्जुन की आंख को धुंधला करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उसके स्कूल में न तो बैठने की व्यवस्था है न पानी की और न शौचालय की। अर्जुन का स्कूल जयपुर में लोगों को हवाई अड्डे से लाने ले जाने वाली टोंक रोड के नजदीक चलता है। अम्बेडकर कॉलोनी के इस राजकीय प्राथमिक विद्यालय में करीब ४५ बच्चे और दो अध्यापिकाएं हैं। सुविधा से महरूम बच्चों के मज़दूर माता पिता बच्चों की सुरक्षा को लेकर हरदम चिन्तित रहते हैं और बच्चों को रोजाना स्कूल भेजने में कतराते भी हैं। अर्जुन और उसके साथियों के माता पिता उन्हें अच्छी पढ़ाई के लिए निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं लेकिन गरीब की फटी पोटली में फीस भरने को पैसे नहीं।



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Thursday, 26 May 2011

2 - शिक्षा का अधिकार ----- तो संवर जाऊं मैं.....

मासूम दरख्वास्त  
क्या वाकई कलक्टर, क्लर्क और कल्लू चपरासी के बच्चे कभी सहपाठी होंगे? क्या हर एक बच्चा बराबरी के हक के साथ बढिय़ा शिक्षा का हक पा जाएगा? बच्चों की शिक्षा पर गरीब मां बाप को एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा? कब तक  वक्त की सख्ती में पलते बच्चों को तख्ती थामने का मौका मिल पाएगा?  देश के 70 फीसदी बच्चे आठवीं से पहले स्कूल छोड़ देते हैं और 80 फीसदी 11वीं से पहले। इसके अलावा देश के कुल 80 लाख और 14 साल के करीब 80 हजार बच्चे फिलहाल शिक्षा से वंचित हैं। राज्य में 6 से 14 साल के बच्चों की संख्या प्रदेश की कुल आबादी की करीब 20 फीसदी है। इनमें से डेढ़ लाख से भी ज्यादा को स्कूली शिक्षा नसीब नहीं और एक लाख से ज्यादा बच्चे बीच में स्कूल छोड़ देते हैं। ये हालात तब हैं जब सर्व शिक्षा अभियान में सरकार सौ फीसदी नामांकन का दावा कर रही है। पिछले साल अगस्त में 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून बन गया और इस अप्रेल से लागू हो गया। गरीब-अमीर और शहर-गांव का भेद पाटने और सामाजिक समानता की जड़ें मजबूत करने की सोच से सींचे इस कानून में कई प्रावधान हैं जिन पर चलकर बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में थोड़े सुधार की आस जरूर बंधती है लेकिन संशय बरकरार है।
स्कूल प्रबन्धन में 75 सामुदायिक भागीदारी, निजी स्कूलों की जिम्मेदारी और गुणवत्ता के पैमानों का मुद्दा अहम है। सभी बच्चों को समान स्कूलों में समान शिक्षा कब तक मिल पाएगी, इसका कहीं कोई आकलन नहीं है। यह कानून मौजूदा हालात में क्या बेहतरी लाएगा ? जवाब ढूंढने निकले तो लगा शहरी और ग्रामीण बस्तियों के बीसियों स्कूल की टूटी जालियों से तकते बच्चे कह रहे हों - मैं वो मिट्टी हूं जो है चाक की गर्दिश में असीर- कैद, तू अगर हाथ लगा दे तो संवर जाऊंगा। काश हाकिमों को भी सुनाई दे जाए ये मासूम दरख्वास्त। 


                                                                                                                           
क्षिप्रा माथुर 


Tuesday, 24 May 2011

1. शिक्षा का अधिकार

पिछले साल अप्रेल में 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का कानूनी हक मिला तो उम्मीद थी कि अब देश के उन 16 करोड़ बच्चों की किस्मत बदल जाएगी जो अपने हालात की वजह से स्कूल से छिटके रह गए। पत्रिका ने इस अधिकार के उस पहलू पर मुहिम शुरू की जिसे लेकर देश के तमाम बड़े निजी स्कूलों की लॉबी सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा चुकी थी और कोर्ट उनकी तमाम दलीलों को खारिज कर चुका था। मसला अनुदानित और गैर अनुदानित और किसी भी बोर्ड से मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के आरक्षण का। नियमों को कैसे दफन किया जाता है हम जानते हैं इसीलिए हमने संकल्प लिया - सबको पढ़ाएं, आगे बढ़ाएं।
जब जमीनी हकीकत खंगाली तो अन्दाजा हुआ न जरूरतमन्दों को अपने हक की जानकारी है न ही प्रशासन नियमों को कड़ाई से लागू करने के लिए राज़ी है। दूसरी ओर निजी स्कूलों की लॉबी का दबाव भी लगातार बना हुआ है।  निजी स्कूलों के तर्क हैं कि गरीब बच्चों के लिए सरकारी स्कूल हैं ही फिर हम पर ये भार क्यों। मुफ्त में पढ़ाने का भार कैसे सहेंगे। गरीब बच्चा अभिजात्य परिवारों के बच्चों के समकक्ष कैसे आ पाएगा। कानून में साफ- साफ लिखा होने के बावजूद नियम कायदे ताक में रखे थे।
पत्रिका ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के प्रवेश की पड़ताल शुरू की। इस पड़ताल को तीन स्तरीय योजना बनाई-
  • निजी स्कूलों की हकीकत मालूम करना, जिम्मेदारी से बचने वालों की खैर खबर लेना और पोल खोलना 
  • सरकारी मशीनरी और स्कूल शिक्षा विभागों को नींद से जगाना  
  • गैर सरकारी नागरिक समूहों को साथ लेकर वंचित बच्चों की पहचान करना और उनके दाखिले के लिए आवेदन भरवाना
तीनों राज्यों के कुल साठ जि़लों में अपने रिपोर्टर्स की फौज लगाकर निजी स्कूलों की खबर लेनी शुरू की तो स्कूलों में भी खलबली मच गई और जिला प्रशासन ने भी कागज खंगालने शुरू किए। राजस्थान में 31 मार्च को शिक्षा विभाग के आदेश के बावजूद स्कूलों तक कागज नहीं पहुचे तो जबानी तौर पर स्कूलों को अगले साल तक आदेश की पालना की मोहलत देने की तैयारी भी सामने आई। बड़े स्कूलों ने अपने बचाव में हर सम्भव तर्क दिए तो छोटे स्कूलों ने नियम का हवाला देने पर प्रवेश देने की प्रक्रिया शुरू की। राजस्थान में ढाई लाख की सालाना आय को गरीब व वंचित वर्ग का पैमाना बनाकर निजी स्कूलों के लिए ढाल खड़ी करने की चाल बखूबी चली गई तो मध्यप्रदेश में प्रशासन ने सक्रियता बरतते हुए निजी स्कूलों पर सख्ती बरतने में हमारा साथ दिया।
मुहिम में हमने हर जिले के पांच बड़े निजी स्कूलों पर नज़र रखी, साथ ही सामाजिक संगठनों के जरिए उस स्कूल के इर्द- गिर्द बसे गरीब बच्चों की पहचान करवाई। उनकी समझाइश की। उनके हक के बारे में उन्हें बताया। उन्हें लेकर निजी स्कूलों के पास गए। स्कूलों ने आनाकानी की तो उनकी खबर ली। स्कूलों ने सरकारी गाइडलाइन नहीं मिलने, बच्चे के पास पूरे दस्तावेज न होने, प्रमाण पत्रों को अटेस्ट करवाकर लाने, सीबीएसई बोर्ड होने, जिला शिक्षा अधिकारी से लिखित में लाने के बाद प्रवेश पाने आदि अडंग़े लगाकर बला टालने की भरपूर कवायद की। तो हमने हेल्पलाइन के माध्यम से उन्हें भी नियम कायदों की जानकारी दी। निर्देश की कॉपी मुहैया करवाई। कहीं स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने का बहाना आया तो हमने समस्या जिला शिक्षा अधिकारी तक पहुंचाई । वहां इन स्कूलों को 25 फीसदी गरीब बच्चों को प्रवेश नहीं देने वाले स्कूलों को इतनी ही सीटें बढ़ाकर प्रवेश देने का आदेश हुआ। इस मुहिम का सबसे सुखद पहलू ये रहा कि इस मुहिम में सामाजिक संगठनों ने हमारा दिल से साथ दिया। गरीब बच्चों को शिक्षा के दर तक पहुंचाने में उन्होंने आहूति दी। और इस बूते अभी तक सैकड़ों बच्चे निजी स्कूलों में अपने हक पाने की कतार में लगे हैं। प्रवेश प्रक्रिया जारी है और हमारी मुहिम भी।
जिनके शिक्षा के अधिकार की बात है वे तो अपने हर अधिकार से अनजान हैं जिम्मेदारी समाज की, हर मजबूत हाथ की है जो एक-एक नन्ही उंगली थामने का बीड़ा उठा ले। सिर्फ मीडिया की नहीं अन्य करोबारी समूह, प्रोफेशनल्स और समाजसेवियों के लिए मौका है ज्ञान के लिए दान का, योगदान का।
                                                                                                                                                क्षिप्रा माथुर

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